आठ साल में भी 90 फीसदी झारखंड आंदोलनकारियों की नहीं हो पायी पहचान


झारखंड/रांची:  हेमंत सोरेन की सरकार ने झारखंड आंदोलनकारियों को राज्य के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में पांच फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया है।


साथ ही मृतक और दिव्यांग हुए आंदोलनकारियों के आश्रितों को सीधी नियुक्ति देने का फैसला भी लिया है. इस फैसले का आम तौर पर स्वागत हो रहा है, लेकिन वास्तविकता यह है राज्य में झारखंड आंदोलनकारियों को चिन्हित करने का बड़ा टास्क अब तक अधूरा पड़ा है।
आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के लिए 2012 में बने आयोग को छह बार विस्तार मिला, लेकिन आंदोलनकारियों की दावेदारी वाले आवेदनों में से बमुश्किल पांच से सात फीसदी आंदोलनकारी ही चिह्नित किये जा सके. आंदोलनकारियों को चिन्हित करने वाले आयोग का कार्यकाल समाप्त हुए एक साल हो चुका है और यह बड़ा टास्क अब भी अपनी जगह कायम है।

पांच हजार ही हैं चिन्हित ‘झारखंड आंदोलनकारी’

राज्य में ‘झारखंड आंदोलनकारी’ को चिन्हित करने के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में बनाये गये आयोग ने साल 2012 से काम करना शुरू किया।
तब से लेकर अब तक राज्य के विभिन्न जिलों से 63289 लोगों ने खुद को ‘झारखंड आंदोलनकारी’ होने का दावा किया है. इनमें से आयोग ने केवल पांच हजार लोगों को ही ‘झारखंड आंदोलनकारी’ माना है।
अब भी आयोग के पास 90 फीसदी से अधिक आवेदन यूं ही पड़े हुए हैं. बताते चलें कि झारखंड आंदोलनकारियों को चिन्हित करने वाले आयोग का कार्यकाल 8 फरवरी 2020 को समाप्त हो चुका है।

कैसे होंगे चिन्हित, जब आयोग काम ही करता है दो महीने

‘झारखंड आंदोलनकारी’ को चिन्हित करने वाले आयोग का गठन शुरू में एक साल के लिए हुआ था, जिसे समय-समय पर छह-छह माह का विस्तार मिलता रहा है. जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में बने आयोग को छह से अधिक बार विस्तार मिला था. अब विक्रमादित्य प्रसाद दिवंगत हो चुके हैं।

एक हजार से अधिक आवेदकों की हो चुकी है मौत

झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा के संस्थापक पुष्कर महतो बताते हैं कि राज्य में आंदोलनकारियों को चिन्हित करने का काम अबतक जिस गति से किया गया है वो पर्याप्त नहीं है. वो कहते हैं कि आयोग का गठन होने के बाद जब इसका काम शुरू हुआ तो काम करने के लिए केवल दो महीने का समय मिला।
इसके बाद भी जब-जब विस्तार हुआ, आयोग को काम के लिए कायदे से वक्त ही नहीं मिल पाया. कागजी प्रक्रियाएं इतनी उलझाऊ रहीं कि आयोग को कभी भी कायदे से काम करने का वक्त नहीं मिला।
ऐसे में ‘झारखंड आंदोलनकारियों’ को चिन्हित करने में देरी होना लाजिमी है. वो बताते हैं कि आवेदन करने वाले 63 हजार से अधिक लोगों में से एक हजार से अधिक लोगों कि मौत इसी आस में हो गयी कि उन्हें भी आंदोलनकारी का दर्जा मिल जाये।।

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