चेरो साम्राज्यः राजा से मजदूर तक की कहानी! - CHERO DYNASTY

चेरो राजवंश के स्वर्णिम इतिहास के लिए झारखंड का पलामू जाना जाता है. पढ़ें, चेरो साम्राज्य की पूरी कहानी.


पलामूः बिहार-झारखंड में एक कहावत प्रचलित है. 'धनी धनी राजा मेदनिया घर-घर बाजे मथनिया ...' इसका अर्थ है धन्य है राजा मेदिनी राय जिनके साम्राज्य में दूध-दही की कमी नही है. यह कहावत कही गई है चेरो राजवंश के प्रतापी राजा मेदिनी राय के लिए.

चेरो राजवंश के इतिहास काफी समृद्ध रहा है. 1585 से लेकर 1813 तक चेरो राजवंश का साम्राज्य रहा. करीब 400 वर्षों तक शासन करने वाले चेरो राजा आज रंक हो चुके हैं. चेरो राजा से जमींदार बने, जमींदार से किसान, अब कई इलाकों में किसान से वो मजदूर बन गए हैं.

चेरो जनजाति को सरकार ने संरक्षित की श्रेणी में डाल दिया है और झारखंड में यह अनुसूचित जनजाति जबकि उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के श्रेणी में है. चेरो साम्राज्य और इतिहास को लेकर लिखित दस्तावेज काफी कम हैं. उनसे जुड़े हुए इतिहास और दस्तावेज कई अलग-अलग हिस्सों में बंटे हुए हैं.

नेपाल के कुमाऊं से शुरु हुआ चेरो साम्राज्य का सफर

चेरो राजाओं के बारे में 1585 से 1813 तक जिक्र है. ऐसा कहा जाता है नेपाल के कुमाऊं के इलाके से सबसे पहले चेरो की जनजाति की शुरुआत हुई. हालांकि कई धार्मिक पुस्तकों में भी चेरो का जिक्र होने का दावा किया गया है. कुमाऊं से निकलकर पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के दौरान चेरो समुदाय के लोग दिल्ली पहुंचे. उसके बाद उनकी टोली मुरंग (बंगाल) पहुंची. इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में उनकी टोली रोहतास के इलाके में पहुंची थी. इसके बाद इनका फैलाव चंपारण, बेतिया, पूर्णिया, शाहाबाद और सोन नदी के तटवर्ती की इलाकों में बढ़ता गया.

पलामू से शुरू हुआ चेरो राजाओं का शासन

चेरो राजाओं के साम्राज्य को लेकर अलग-अलग लिखित दस्तावेज हैं. मुगलों द्वारा लिखित दस्तावेज में 1585 जबकि अंग्रेजों के द्वारा लिखी दस्तावेज में 1613 से चेरो साम्राज्य की शुरुआत की बात सामने आती है. भगवंत राय ने चेरो साम्राज्य की नींव रखी थी. उसे दौरान राजा मानसिंह के साम्राज्य को भगवंत राय ने कब्जे में लिया था और यहीं से चेरो साम्राज्य की शुरुआत की. भगवंत राय के बाद से 16 चेरो राजाओं ने अलग अलग समय में शासन किया.

भगवंतत राय ने चेरो साम्राज्य की नींव रखी थी. भगवंत राय राजा मानसिंह के यहां सेनापति थे. वहीं से उन्होंने राजा मानसिंह के साम्राज्य पर कब्जा किया और चेरो राजवंश की आधिकारिक शुरुआत की. चेरो राजाओं का साम्राज्य कई इलाकों तक फैला हुआ. मुगल शासन एवं अन्य राज्यों के आक्रमण से बचाव के लिए पहाड़ी इलाके में किला बनाया गया. जिस इलाके में किला बनाया गया वह पलामू गांव था. यही वजह थी कि चेरो साम्राज्य का किला पलामू किला के नाम से जाना जाता है. 

- राजेश्वर सिंह, चेरो इतिहासकार.

मुगलों ने तीन बार किया था पलामू किला पर आक्रमण

पलामू किला चेरो राजवंश का सबसे बड़ा स्मारक है. पुराने पलामू किला का निर्माण 1628 से 1658 के बीच करवाया गया था. जबकि नया पलामू किला 1658 से 1674 के बीच निर्माण किया गया था. कहा जाता है कि पलामू किला से निकली सुरंग सीधे बिहार के रोहतास किला से जुड़ी थी. रोहतास किला में चेरो शासकों ने भी लंबा वक्त गुजारा है.

पलामू किला पर मुगलों के द्वारा तीन बार आक्रमण किया गया था. चेरो शासक मुगलों के खजाने को लूट लिया करते थे. 20 अक्टूबर 1641 में सबसे पहले मुगलों की सेना ने पलामू किला पर आक्रमण किया था. 1642 में मुगल सेना वापस लौट गई थी. 1643 में दूसरी बार मुगलों ने पलामू किला पर आक्रमण किया था इस दौरान भीतर घात एवं कमजोर होने के बाद समझौता हुआ था. 1660 में मुगलों ने तीसरी बार पलामू किला पर आक्रमण किया था और महीना के युद्ध के बाद इस पर कब्जा कर लिया. आज झारखंड की सरकार पलामू किला के जीर्णोद्धार करने के लिए पहल किया है.

ऐतिहासिक पलामू किला के जीर्णोद्धार करने के लिए कई पहल की गई है. सरकार इसे मूल स्वरूप के लाने के लिए योजना तैयार किया है और पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने एक सर्वे भी करवाया है. पलामू टाइगर रिजर्व 680 एकड़ में फैला हुआ है. -प्रजेशकांत जेना, उपनिदेशक, पलामू टाइगर रिजर्व.

अशिक्षा और उदार प्रवृत्ति के कारण चेरो राजवंश हुआ कमजोर

चेरो राजा काफी उदार प्रवृत्ति के थे. इतिहास में चेहरा राजाओं के बीच काफी मतभेद हुए और भीतरघात भी हुए है. चेरो राजा मेदिनीराय का शासन काल काफी चर्चित रहा है. मेदिनी राय महान शासकों में से एक थे. साम्राज्य खत्म होने के बाद चेरो बिखरते चले गए और कमजोर हो गए. चेरो जनजाति को लेकर आवाज उठाने वाले अजय सिंह चेरो बताते हैं कि चेरो का मजबूत इतिहास रहा है और काफी संघर्षशील भी रहा है. पारिवारिक बिखराव और अशिक्षा साम्राज्य के कमजोर होने का बड़ा कारण बना और इसके बिखराव के सामाजिक कारण भी रहे हैं. इतिहास में बात करें तो चेरो समाज के लोगों को पढ़ने से वंचित किया गया था यह भी पिछड़ने का एक बड़ा कारण है. चेरो के इतिहास को दरकिनार किया गया, कुछ लोगों ने इसे संयोजने की भी कोशिश की है.

चेरो जनजाति समाज के लोग विधायक से लेकर ब्यूरोक्रेट्स तक बने

झारखंड में चेरो जनजाति की एक बड़ी आबादी गांव में रहती है. कई गांव मूलभूत सुविधा से भी दूर है. हालांकि लातेहार के मनिका विधायक रामचंद्र सिंह चेरो जनजाति से आते हैं. वहीं पश्चिम बंगाल के पूर्व डीजीपी गंगेश्वर सिंह भी इसी समाज से जुड़े हुए हैं. कई लोग सिविल सर्विस एवं अन्य क्षेत्रों में भी चेरो समाज के लोग आगे बढ़े हैं. मेदिनीनगर सदर प्रखंड के उप प्रमुख शीतल सिंह बताते हैं कि चेरो समाज में अभी भी शिक्षा की कमी है. कई लोगों ने सफलता की राह पकड़ी भी है. अशिक्षा एवं शराब समाज के पिछड़ने का बड़ा कारण भी रहा है. समाज से जुड़े हुए कई युवा पलायन कर रहे हैं और काम के लिए बाहर जा रहे हैं.

चेरो जनजाति की स्थिति

2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में चेरो जनजाति की आबादी 95 हजार 575 है. यह जनजाति मुख्य तौर पर पलामू के इलाके में पाई जाती है. इनकी साक्षरता दर 63 प्रतिशत है. चेरो जनजाति में लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 956 महिला है. पूरे भारत में चेरो जनजाति के लोग झारखंड राज्य के अलावा बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तर प्रदेश के इलाके में निवास करते हैं.


Post a Comment

Previous Post Next Post